कभी कभी सोचती हूं कैसे लोगों के बीच रह रहे हैं हम,हर रिश्ता बेमानी है दिल से कोई जुड़ा ही नहीं है बस हर शख्स को नम्बर बनाने है अच्छा दिखाने का नाटक करना है,कैसी दुनिया है यह? यहां अपना कोई है ही नहीं बस दिखावे से भरी हुई दुनिया है यह।
इतनी बड़ी दुनिया में सुशांत सिंह राजपूत का कोई अपना नहीं था जिसके साथ वो अपने दुख सुख बांट सकते? किसी ने भी उनको शायद इतनी जगह अपने जीवन में दी ही नहीं जिसके सामने वह अपने दिल की बात खुल कर बोल सकते,तो क्या और कैसे रिश्ते हैं यह?
बस नाम के रिश्ते ही रह गए हैं क्या?
इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास ना हो या कोई खुल कर इस बात पर बात ना करना चाहता हो लेकिन वास्तविकता यह ही है सबकी।
औपचारिकता के रिश्ते रह गए हैं दिल के रिश्ते तो कहीं खो चुके हैं
इस सच्चाई को जितना जल्दी स्वीकार किया जाएगा उतना ही हम सबके लिए फायदे का सौदा होगा क्योंकि झूठी उम्मीद किसी से रखने का मतलब है और बहुत से सुशांत की कहानी को जन्म देना।
धन्यवाद
इतनी बड़ी दुनिया में सुशांत सिंह राजपूत का कोई अपना नहीं था जिसके साथ वो अपने दुख सुख बांट सकते? किसी ने भी उनको शायद इतनी जगह अपने जीवन में दी ही नहीं जिसके सामने वह अपने दिल की बात खुल कर बोल सकते,तो क्या और कैसे रिश्ते हैं यह?
बस नाम के रिश्ते ही रह गए हैं क्या?
इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास ना हो या कोई खुल कर इस बात पर बात ना करना चाहता हो लेकिन वास्तविकता यह ही है सबकी।
औपचारिकता के रिश्ते रह गए हैं दिल के रिश्ते तो कहीं खो चुके हैं
इस सच्चाई को जितना जल्दी स्वीकार किया जाएगा उतना ही हम सबके लिए फायदे का सौदा होगा क्योंकि झूठी उम्मीद किसी से रखने का मतलब है और बहुत से सुशांत की कहानी को जन्म देना।
धन्यवाद